शासन सम्राट समुदाय के परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद विजय प्रद्युम्नसूरिश्वरजी महाराज साहेब के पटधर, प्रतिष्ठाचार्य, अनेक विहारधामों के प्रेरक, परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद विजय राजहंससूरिश्वरजी महाराज साहेब का जन्म मुंबई के बोरिवली नगर में दिनांक 02.01.1962 को एक शुभ दिन हुआ था।
पूज्यश्री का दीक्षा-पर्याय 48 वर्षों का है।
जब समग्र सौराष्ट्र में भीषण अकाल पड़ा था, तब परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद विजय प्रद्युम्नसूरिश्वरजी महाराज साहेब के साथ पूज्यश्री ने शाश्वत गिरिराज पर विराजमान परम कृपालु परमात्मा श्री आदिनाथ भगवान का औषधियों, द्रव्यों एवं अनेक सरिताओं के जल से विशिष्ट अभिषेक किया था। इस अभिषेक के प्रारंभ में दूर-दूर तक एक भी बादल नहीं दिखाई देता था, लेकिन इसकी पूर्णाहुति से पहले ही पूरा आकाश काले बादलों से घिर गया और वर्षों बाद पहली बार मूसलाधार वर्षा ने समग्र सौराष्ट्र और गुजरात को भिगो दिया। क्या चमत्कार था...!!
मुंबई के माटुंगा श्रीसंघ से पूज्यश्री ने "रात्रिभोजन निषेध" जैसे नरक के द्वार को बंद करने की प्रेरणा दी थी।
सांताक्रुज़ में, सोलह संस्कारों में से एक "संस्कार शक्ति – गर्भ संस्कार" की रचना करके शुभ शुरुआत की गई थी। आज अनेक माताओं ने इस संस्कार को पाकर हजारों बच्चों को जन्म दिया है। यह संस्था, जो भारतभर में अनेक केंद्र संचालित करती है, विदेशों में भी ख्याति प्राप्त कर रही है।

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श्रीसंघ एकता के प्रवर्तक पूज्यश्री ने बोरिवली के सत्यावीस संघों का समन्वय करके एक ही शोभायात्रा की शुभ शुरुआत की थी, जो मुलुंड, घाटकोपर और दक्षिण मुंबई के संघों में फैली और आज भी अखंड रूप से चल रही है।
साधर्मिक हित व वात्सल्य के प्रवर्तक पूज्यश्री ने बोरिवली के योगीनगर में "जैन एजुकेशन एंड एम्पावरमेंट ट्रस्ट" को पावन निश्रा प्रदान की थी, जिसके माध्यम से आज तक हजारों परिवारों को भक्ति का लाभ मिला है और यह सेवा आज भी अविरत रूप से जारी है।
नवी मुंबई के बेलापुर क्षेत्र में, पूज्यश्री के वरदहस्त से "श्री आदिनाथ विद्यापीठ" की स्थापना की गई, और उसके प्रांगण में श्री वासुपूज्य स्वामी का नेत्रसुखद जिनालय में प्रतिष्ठा की गई। यह संस्था पिछले 13 वर्षों से सफलतापूर्वक संचालित हो रही है।